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कविता

विराट चिड़िया

लीलाधर जगूड़ी


पृथ्‍वी के चारों ओर भोर ही भोर

तने हुए अपार पंखोंवाली विराट चिड़िया
जिसकी चोंच में सूरज फँसा है
समुद्र पी रही है। ग्रहों को चुग रही है

पेट की चपेट में दिमाग। दिमाग की चपेट में पेट
चिड़िया बीच ब्रह्मांड। बीच उड़ान में
रात को दिन से
दिन को रात से उगते हुए देख रही है

चोंच में सूरज पकड़े एक पृथ्‍वी अस्‍त हो रही है
चोंच में ओस पकड़े एक पृथ्‍वी उदित हो रही है

सब खिंचे हुए हैं इसकी ओर
कि यह ताक रही है किसकी ओर
यों चारों दिशा में उड़ती चिड़िया
एक कीड़े को देखकर हो रही है विभोर

ढूँढ़ती है किसको करती है किसकी परिक्रमा
सृष्टि की सबसे पुरानी कहानी उदरस्‍थ किये हुए
समुद्रों तालाबों और नदियों को दिये हुए
घाट-घाट का पानी

मगर सिर्फ ओस ही ओस दिखती है भोर के चारों ओर।

 


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